2025: OLA में बड़ा बदलाव! Bhavish Aggarwal अग्रवाल ने कर्मचारियों को दिया नया टारगेट
मुंबई: ओला के मालिक और सीईओ भाविश अग्रवाल ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया है जिसने कंपनी के भीतर और बाहरी दुनिया में चर्चा का बवंडर खड़ा कर दिया है। उन्होंने ओला कंपनी के सभी कर्मचारियों के लिए साप्ताहिक यानि हर हफ्ते प्रगति अपडेट्स/Process Report अनिवार्य कर दिए हैं। कंपनी के मालिक द्वारा उठाया गया यह कदम कई लोगों को टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क की गतिविधि शैली की याद दिला रहा है, जो अपनी टीम्स के साथ सीधे, बात चित और लगातार संवाद के लिए जाने जाते हैं।
क्या यह फैसला ओला को एक नई गति देगा, या फिर यह कर्मचारियों पर दबाव बढ़ाने वाला फैसला साबित होगा? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
"हर हफ्ते एक रिपोर्ट, हर हफ्ते एक लक्ष्य": Bhavish Aggarwal की सोच
हमारे सूत्रों के अनुसार, Bhavish Aggarwal ने इस नीति को लागू करते हुए कर्मचारियों को एक इंटरनल नोट भेजा, जिसमें कहा गया की, “हमारी ग्रोथ की स्पीड हमारी कम्युनिकेशन की स्पीड से तय होती है। कंपनी में मौजूद हर टीम को हफ्ते के अंत में अपने प्रोजेक्ट्स, चुनौतियों और अगले सप्ताह के लक्ष्यों की डिटेल्ड रिपोर्ट शेयर करनी होगी।” यह प्रक्रिया ओला की “हाइपर-एग्रेसिव” कार्यसंस्कृति/Work culture को और मजबूती देगी, जहां इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और मोबिलिटी सेक्टर में प्रतिस्पर्धा/Competition ज्यादा है।
एक ओला इंजीनियर (जिनका नाम गोपनीय रखने की शर्त पर) हमे बताते हैं की , “पहले भी हमारी मीटिंग्स फ्रीक्वेंट/Frequent थीं, लेकिन अब डेटा-ड्रिवन अपडेट्स पर जोर बढ़ गया है। कुछ को लगता है कि यह ट्रांसपेरेंसी बढ़ाएगा, पर कुछ सहकर्मी इसे ‘माइक्रोमैनेजमेंट’/Micromanagment मान रहे हैं।”
एलन मस्क का कनेक्शन: क्या है समानता?
Bhavish Aggarwal के इस कदम की तुलना एलन मस्क की “फ्लैट ऑर्गनाइजेशन” फिलॉसफी से की जा रही है। एलोन मस्क टेस्ला और स्पेसएक्स में सीधे इंजीनियर्स से अपडेट्स मांगते हैं, बीच के कर्मचारियों को छोड़कर। 2018 में उन्होंने एक मेमो में लिखा था, “सीनियर मैनेजर्स के बजाय सीधे इंजीनियरों से बात करो। हायरार्की (यानि किसी समूह में रहने वाले लोग) स्पीड का दुश्मन है।”

उद्योग विश्लेषक/Industry Analyst प्रिया शर्मा कहती हैं, “Bhavish Aggarwal और मस्क दोनों का मानना है कि बार-बार की जाने वाली रिपोर्टिंग टीम्स को अकाउंटेबल रखती है और धीमी ब्यूरोक्रेसी को खत्म करती है। लेकिन यह तभी काम करता है जब कर्मचारियों को लगे कि उनकी आवाज सुनी जा रही है, न कि सिर्फ उन्हें नंबर्स गिनाए जा रहे हैं।”
साप्ताहिक अपडेट्स का मैकेनिज़्म: कैसे काम करेगा यह नया सिस्टम?
Bhavish Aggarwal के अनुसार, हर टीम को “SMART Goals” (Specific, Measurable, Achievable, Relevant, Time–bound) फ्रेमवर्क के तहत अपडेट्स तैयार करने होंगे। इन्हें ओला के इंटरनल प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जाएगा, जहां क्रॉस-फंक्शनल टीम्स और लीडरशिप टीम इन्हें रियल-टाइम में ट्रैक कर सकेंगे। कुछ विभागों में AI-से आधारित टूल्स का इस्तेमाल होगा, जो प्रोजेक्ट्स की प्रगति और बॉटलनेक्स को ऑटोमैटिकली हाइलाइट करेंगे। एक सीनियर मैनेजर ने बताया की, “यह सिर्फ रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि डेटा के आधार पर त्वरित/Quick फैसले लेने की प्रक्रिया है।”
एलन मस्क से आगे: ग्लोबल लीडर्स की टैक्टिक्स/Tacktis का मिश्रण
Bhavish Aggarwal की रणनीति में केवल मस्क ही नहीं, बल्कि अमेज़न कंपनी के जेफ बेजोस की “डेटा-ओब्सेस्ड” कल्चर की झलक भी दिखती है। बेजोस ने अमेज़न में “सिक्स-पेजर मेमो”/Six pajer memo की परंपरा शुरू की थी, जहां हर मीटिंग की शुरुआत डीप एनालिसिस वाले दस्तावेज़ से होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ओला इसी तरह “डेटा को कल्चर का कोर” बना रहा है। हालांकि, एलोन मस्क और बेजोस के विपरीत, Bhavish Aggarwal को भारत के “जॉब मार्केट की संवेदनशीलता” (जैसे- टैलेंट की कमी, वर्क-लाइफ बैलेंस की मांग) को भी संभालना होगा।
ओला कंपनी का इतिहास: क्या यह पहली बार है?
(Bhavish Aggarwal) ओला ने 2021 में “10-Minute Standups” नाम की एक पहल शुरू की थी, जहां हर टीम्स को दिन की शुरुआत में 10 मिनट की अपडेट मीटिंग करनी होती थी। हालांकि, कर्मचारियों के अनुसार, यह प्रयोग “अनियमित और असंरचित” रहा। नई साप्ताहिक नीति को इसका अपग्रेडेड और स्ट्रक्चर्ड वर्जन माना जा रहा है। एक पूर्व कर्मचारी (अनाम) ने कहा, “Bhavish Aggarwal” हमेशा स्पीड और स्केल पर फोकस्ड रहे हैं, लेकिन अब वे सिस्टमैटिक अप्रोच अपना रहे हैं।”

वेलनेस और बर्नआउट: क्या कर रही है ओला?
कर्मचारियों की मानसिक सेहत को लेकर सवालों के जवाब में, ओला कंपनी ने हाल ही में “फ्लेक्सी-वर्क ऑवर्स” और माइंडफुलनेस वर्कशॉप्स शुरू की हैं। साथ ही, कंपनी ने एक इंटरनल सर्वे में पाया कि 60% कर्मचारी “क्लियर गोल्स” चाहते हैं, जो उन्हें साप्ताहिक अपडेट्स से मिल सकते हैं। ओला कमपनी की HR हेड, रिया कपूर, कहती हैं, “हमारा फोकस ट्रांसपेरेंसी/Transperancy और सपोर्ट का बैलेंस बनाना है। अपडेट्स के साथ हम अपना ‘फीडबैक लूप’ भी सुधार रहे हैं।”
IPO और इन्वेस्टर्स का प्रेशर: क्या है यह कनेक्शन?
ओला इलेक्ट्रिक के 2025 तक IPO लाने की योजना है। विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति इन्वेस्टर्स को “डिसिप्लिन्ड और अकाउंटेबल टीम” का सिग्नल देने का प्रयास है। एडलवाइस की रिपोर्ट के अनुसार, ओला की वैल्यूएशन बढ़ाने के लिए “ऑपरेशनल ऑप्टिमाइजेशन” अहम है। हालांकि, एक वेंचर कैपिटलिस्ट (अनाम) चेतावनी देते हैं, “इन्वेस्टर्स कल्चर को लेकर भी सवाल करते हैं। टीम का मोराले ऊंचा रखना IPO के लिए उतना ही जरूरी है।”

ग्लोबल EV ट्रेंड्स: कैसे प्रभावित कर रहे हैं ओला को?
चीन में EV कंपनियां जैसे BYD और नियो ने “रियल-टाइम डेटा मॉनिटरिंग” को अपनी प्रोडक्टिविटी का आधार बनाया है। Bhavish Aggarwal ने हाल के एक इंटरव्यू में कहा, “हमें ग्लोबल स्पीड से चलना होगा। चीन ने EV में 10 साल में जो किया, भारत को वह 5 साल में करना है।” इसी लक्ष्य के चलते साप्ताहिक अपडेट्स को “स्पीड मल्टीप्लायर” बताया जा रहा है।
टैलेंट रिटेंशन: नया चैलेंज?
भारत के टेक सेक्टर में “ग्रेट रिजाइनेशन” का दौर जारी है। ओला जैसी कंपनियों के सामने स्किल्ड प्रोफेशनल्स को बनाए रखने की चुनौती है। एक हेडहंटर (अनाम) ने बताया, “जो कैंडिडेट्स फ्लैक्सिबिलिटी चाहते हैं, वे ओला के सख्त कल्चर से दूर हो सकते हैं।” हालांकि, ओला के टैलेंट एक्विजिशन टीम और Bhavish Aggarwal का दावा है कि उनकी “इम्पैक्ट-फर्स्ट” फिलॉसफी युवाओं को आकर्षित करती है।
कस्टमर एक्सपीरियंस पर असर: क्या फर्क पड़ेगा?
(Bhavish Aggarwal) साप्ताहिक अपडेट्स का एक उद्देश्य यह भी है की प्रोडक्ट डेवलपमेंट साइकिल को तेज करना भी है। उदाहरण के लिए, ओला इलेक्ट्रिक के S1 स्कूटर में जो सॉफ्टवेयर अपडेट्स आए, उन्हें टीम ने ग्राहकों के फीडबैक के आधार पर हफ्तेभर में इम्प्लीमेंट किया। एक उत्पाद प्रबंधक ने कहा, “अब हमारे पास प्रोएक्टिवली समस्याओं को सुलझाने का समय है, न कि आग लगने का इंतज़ार करने का।”
भारत बनाम वेस्ट: कल्चरल कॉम्प्लेक्सिटी
भारतीय कार्य संस्कृति में “रिश्तों और लचीलेपन” पर ज़ोर रहा है, जबकि पश्चिमी कंपनियाँ “डेटा और प्रोसेस” को प्राथमिकता देती हैं। ओला की यह नीति इसी संघर्ष को दर्शाती है। ऑर्गनाइजेशनल साइकोलॉजिस्ट डॉ. अनिता भट्ट कहती हैं, “भारतीय टीम्स में ट्रस्ट बनाने के लिए लीडर्स को डेटा और इमोशन के बीच तालमेल बिठाना होगा। केवल नंबर्स पर फोकस करना विषाक्तता/poisoning पैदा कर सकता है।”

भविष्य की राह: Bhavish Aggarwal के अगले कदम?
हमारे सूत्रों के मुताबिक, Bhavish Aggarwal ओला में “परफॉर्मेंस-लिंक्ड इक्विटी बोनस” सिस्टम लाने पर विचार कर रहे हैं, जहां कर्मचारियों को कंपनी के शेयर्स में हिस्सेदारी उनकी साप्ताहिक योगदान के आधार पर मिलेगी। इससे कंपनी में काम क्र रही टीम्स को “ओनरशिप फील” कराने की उम्मीद है। साथ ही, ओला AI रिसर्च लैब में “प्रोजेक्ट प्रेडिक्शन टूल्स” पर काम चल रहा है, जो टीम्स की प्रगति को ऑटोमैटिकली एनालाइज़ करेंगे।
क्या यह भारतीय टेक का नया ब्लूप्रिंट है?
Bhavish Aggarwal का यह प्रयोग न सिर्फ ओला, बल्कि पूरे भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए एक केस स्टडी बन सकता है। अगर यह नीति सफल होती है, तो टाटा, महिंद्रा जैसी पारंपरिक कंपनियाँ भी अपने कल्चर में यह बदलाव ला सकती हैं। परंतु, सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भाविश “स्पीड और स्केल” के साथ “संवेदनशील नेतृत्व”/Sensitive Leadership का संतुलन बना पाएंगे। जैसा कि एक कर्मचारी ने कहा, “हम चाहते हैं कि ओला दुनिया की टॉप EV कंपनी बने, लेकिन इस रेस में हमारी आवाज़ डूबने न पाए।”

विशेषज्ञों की राय: फायदे और चुनौतियां
1. डॉ. राजीव मेहता (लीडरशिप कोच): “स्टार्टअप कल्चर में स्पीड और फ्लेक्सिबिलिटी जरूरी है। साप्ताहिक अपडेट्स टीम्स को फोकस्ड रखेंगे, लेकिन इन्हें ‘टास्क-चेकलिस्ट’ नहीं बनने देना चाहिए। लीडर्स को यह समझना करना होगा कि कर्मचारी इन्हें ग्रोथ का टूल समझें, न कि प्रकार के डर का।”
2. अनुभवी टेक एनालिस्ट रितेश जैन: “यह ट्रेंड भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में बढ़ रहा है। ओला, ओयो, और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां वैश्विक लीडर्स की तरह ‘परफॉर्मेंस-फर्स्ट’ कल्चर अपना रही हैं। पर साथ ही, वर्क-लाइफ बैलेंस को नज़रअंदाज़ करना लॉन्ग-टर्म में टैलेंट रिटेंशन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।”
(Bhavish Aggarwal) कर्मचारियों की क्या है आवाज: उत्साह है या फिरआशंका
1. मार्केटिंग टीम की एक सदस्य: “पहले क्वार्टरली रिव्यू में हम लास्ट-मिनट का पागलपन झेलते थे। अब हर हफ्ते ट्रैक करने से प्रोएक्टिव प्लानिंग होगी।
2. सॉफ्टवेयर डेवलपर (अनाम): “कभी-कभी लगता है कि हम रिपोर्ट्स लिखने में ही ज्यादा वक्त बिता रहे हैं। इनोवेशन के लिए मानसिक स्पेस चाहिए।”
उद्योग का संदर्भ: EV रेस और इनोवेशन प्रेशर
Bhavish Aggarwal ओला इलेक्ट्रिक भारत की EV मार्केट में 30% से अधिक हिस्सेदारी के साथ आगे है, लेकिन टेस्ला के भारत में एंट्री और अशोक लीलैंड जैसे पारंपरिक खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा तेज है। ऐसे में, भाविश का यह कदम कंपनी को “स्टार्टअप-like” एजिलिटी बनाए रखने की कोशिश लगती है।

निष्कर्ष/परिणाम: संस्कृति बनाम दबाव
Bhavish Aggarwal का यह निर्णय निस्संदेह ओला को एक डायनैमिक, रिजल्ट्स-ओरिएंटेड संगठन बनाने की दिशा में है। लेकिन, जैसा कि एलन मस्क के केस में देखा गया है, ऐसी नीतियों का सफलता कर्मचारियों के मनोबल और टीम के विश्वास पर निर्भर करती है। क्या ओला की टीम इस बदलाव को “गेम-चेंजर” के रूप में अपनाएगी, या यह “बर्नआउट” की वजह बनेगी? इसका जवाब समय ही देगा।